Saturday, September 12, 2020

12 Sept 2020

आज फिर काफी समय बाद कुछ लिखने का जी कर रहा है। कुछ दिनों से मन अशांत है। दांत दुख रहे है और सर्दी ने जकड़ रखा है और तड़के सुबह एक गहरे मित्र के पिताजी की अकस्मात निधन की खबर आई। और इन सब के ऊपर पूरे विश्व में फैली ये महामारी कोविड। 
वैसे तो पूरा संसार साल २०२० को जी भर के गलिया दे रहा है, पर में अगर अपनी कहूं तो अब तक ये साल कुछ मिला जुला रहा, और आगे की भगवान जाने।  मै इस साल जनवरी हुकूमते ब्रिटानिया में रहने आ गया अपने बीवी बच्चा समेत। ये सपना कई सालो से मन में था मेरे और श्रीमती जी के, और अब ये पूरा भी हो गया। कंपनी ने बिज़नेस क्लास की सैर भी करा दी और बहुत सारी सुविधाएं भी दी। तनख्वाह थोड़ी कम है पर गुजर जाती है। पर फिर भी मेहनत का फल मिला ऐसा जान पड़ता है। नौकरी जैसी की प्राइवेट होती है भगवान भरोसे वैसी ही है। जीवन में पूरे हुए हर सपने की तरह ये सपना भी इतनी देर से पूरा हुआ कि समझ नहीं आता खुश हूं की दुखी। बीवी खुश है कि चार लोगो को बता सके कि मै तो इंग्लैंड में रहती हूं, पर दुखी भी है कि यहां तो सब काम खुद करना पड़ता है झाड़ू से लेकर रसोई तक सब सिर पे आन पड़ा है। वैसे लॉकडाउन हो जाने से मै अब काफी मदद कर पाता हूं पर फिर भी मेहनत तो है।
पर यहां, ऐसी काफी सुविधाएं, जो की हिन्दुस्तान में बहुत सस्ती और बहुतायत में थी, अब नहीं है। जैसे की घर पे एक झाड़ू लगाने वाली, सस्ते छोटे मोटे पंसारी की दुकान या छोटा मोटा सा एक होटल जहां सौ रुपए में बढ़िया गरमा गर्म डोसा और इडली मिल जाए। ऐसा कुछ भी नहीं है यहां। हर चीज बहुत महंगी है । इस पर ये दांत का दर्द। यहां सिर्फ देखने के दस हजार रूपए लगते है। और नकली दांत का तो पूछिए मत, बस ये जान लीजिए घर की डाउन पेमेंट हो जाए हिन्दुस्तान में। 
खैर,पर कुछ अच्छी बात भी है। खाली खाली सुंदर से रास्ते, हर दस कदम पे एक सुंदर सा बगीचा, छोटे छोटे सुंदर घर, बिजली पानी की कोई किल्लत नहीं। ट्रेन बस सब आरामदायक, कोई भीड़ भड़क्का नहीं। खुली और साफ हवा। और एक अलग ही व्यावसायिक माहौल जहां काफी कुछ नया सीखने को है। 
हां घर दूर है पर घर तो बेंगलुरु से भी दूर ही था। यह तो तभी सोच लेना चाहिए था जब पन्द्रह साल पहले घर छोड़ दिया था। कभी कभी बुरा लगता है पर सोचता हूं शायद घर पर रहता तो और बुरा लगता, कौन जाने। जैसा कि कहते हैं बगल वाले घर की घास हमेशा हरी दिखती है। 
आज के लिए बस इतना ही। अब जा के बीवी के लिए कॉफी बनाओ और बच्चे के लिए दूध। सब मिल बैठकर सिनेमा देख लेते हैं शायद मन बहल जाए। अब दातों का जो होगा होगा देखी जाएगी। 
अगर आपने पढ़ा तो आशा करता हूं अच्छा लगा होगा अगर ना अच्छा लगा तो क्षमा चाहता हूं। मुझे दो तीन साल बाद लिख कर बढ़ा अच्छा लगा।

धन्यवाद😊😊

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